Wednesday, October 31, 2007

जीवन पथ

जीवन पथ है अद्वितीय ,मत लीक पकड़ कर चला करो।
कुछ खोज राह नई अपनी , खुद दीपक बनकर जला करो।
जीवन तर्को का जाल नहीं,अथवा भेड़ों की चाल नहीं।


मृदुमिटटी के हैं बने हुए ,मधुघट फुटा ही करते हैं।
लघु जीवन लेकर आये हैं,प्याले टूटा ही करते हैं।
फिर भी मदिरालय के अंदर ,मधु के घट हैं मधु प्याले हैं।
जो मादकता के मारे हैं ,वे मधु लूटा ही करते हैं।
वह कच्चा पीने वाला हैं ,जिसकी ममता घट प्यालों पर ।
जो सच्चे मधु से जला हुआ ,कब रोता हैं चिल्लाता हैं।

मदिरालय जाने को घर से चलता हैं पीने वाला ।
किस पथ से जाऊँ ,असमंजस में हैं वो भोला भाला ।
अलग अलग पथ बतलाते सब ,पर मैं ये बतलाता हूँ ।
राह पकड़ तू एक चला चल ,पा जाएगा मधुशाला। ।
--हरिवंश राय बच्चन

संपादन-शुभनीत

.................वो २४ घंटे

...............वो २४ घंटे मुझे हमेशा याद रहेंगे । मेरी बहुत सी धारणा उस २४ घंटे में बदल गयी । बात पिछले साल के दिसम्बर महीने की है। अर्जुन सिंह जी के कारण जब सालों बाद फिर आरक्षण कि आग लगी ,तो विरोध फिर होने लगे ,इस बार इसकी आगुवाई एक संस्था बना के छात्रों ने की। इस "youth for equality " नामक संस्था तथा छात्रों ने जब विरोध का दूसरा चरण सुरु किया तो वह दिसम्बर का महीना था। मेरी तो वैसे राजनीती और धरना प्रदर्शन में रूचि नहीं ही है, पर एक तो आरक्षण मेरी रूचि का विषय है, दूसरा अभिषेक का असर था कि जब "youth for equality" से कुछ डॉक्टर बुलाने आये तो हमने बैठकों में भाग लिया,तथा कार्यक्रमों में सहयोग देने का वादा भी किया। इस क्रम में एक कार्यक्रम भूख हड़ताल का था,जिसमे पूरे "B.H.U" के हर faculty से लड़को को भूख हड़ताल पर बैठना था,साथ ही एक हस्ताक्षर अभियान भी चल रहा था। इस कार्यक्रम के पहले दिन हमारे faculty से अभिषेक तथा अंकित तथा कुछ मेडिकल छात्र बैठें। १२ बजे दोपहर के करीब मैं ,रविसंकर ,सुजीत भैया तथा राहुल तिवारी भैया उनकी हौसला अफजाई करने AND. hostel से गए हुए थे। वही कुछ लोगो ने कहा कि हस्ताक्षर के लिए क्यो नही महेंद्र्वी से भी कुछ लोगो को बुला लिया जाये। इस बात से सहमत होकर मैं तथा रवि धरनास्थल IMS गेट से महेंद्र्वी चले। वहाँ से हम बहुत सारे दोस्तों के साथ पहुचे। सबने हस्ताक्षर किया तथा बात करने लगे। इसी बीच डॉक्टर कमल भैया ने कहा कि गांधीगिरी पर एक छोटा सा प्रहसन करना है जिसे कवर करने मीडिया के लोग आ गए थे। हम इसकी तयारी कर रहे थे ,मैं स्क्रिप्ट का संपादन कर रह था ,आशीष त्रिपाठी मनमोहन सिंह बनने के लिए पगरी पहन रहा था। इसी समय प्रोक्टर का एक गाड़ी आई,उन्होने कहा कि यह सिर्फ मेडिकल छात्रों को बैठने की अनुमति है,और I कार्ड देखने लगे। चारु वहीं बैठा हुआ था तथा हम लोग खडे थे ,उन्होने उसे पकड़ लिया तथा गाड़ी में बंद कर लिया। हम लोग तथा रेजीडेंट डॉक्टर उन लोगो से बहस करने लगे कि इसे छोड़ दे तथा आंदोलन को शांतिपूर्ण ढंग से चलने दे,पर वे नहीं माने , इसी बातचीत में उन्होने लाठी चार्ज कर दिया जिसमे कुछ डॉक्टरों को चोट आई ,पर इस घटना को वहाँ आये मीडिया ने कवर कर लिया।इसी बीच अजब घटना हुई ,भूख हड़ताल पर बैठे अभिषेक और अंकित भैया भाग गए तथा और लोग भी या तो भाग गए या तितर बितर होकर छिप गए,बस मैं, निशांत तथा सुजीत भैया प्रोक्टर के पास डॉक्टरों के साथ खडे रहे। घटना के बाद कमल भैया ने रोड जाम करने को कहा और हमलोग रोड पर बैठ गए फिर और लड़के भी आये तथा अपने -अपने contact से और लोग बुलाई जाने लगे। ४ बजे शाम में सुरु हुआ जाम जिसे सिर्फ ८-१० लड़को ने सुरु किया था,६ बजे तक २००-३०० लड़को तक पहुच चूका था।बहुत लोगो ने समर्थन दिया तथा मीडिया ने लाइव कवर किया। रात मी १० बजे बैठक के समय कम लोग रह गए पर कमल भैया ने रात को वहीं र्रुकने को कहा अभिषेक और कुछ लड़के वही रूक गए ,मैं और निशांत करीब १२:३० बजे रात में लौट गए। फिर सुबह में कुछ मेडिकल छात्र तथा निशांत मुझे उठाने आये तथा ७ बजे सुबह तक फिर काफी बड़ा जम तथा प्रदर्शन शुरू हो गया। इस बीच पुरा जिला प्रशासन पूरे रात वहाँ जमा रहा तथा चारु को शाम में छोड़ दिया पर हम प्रोक्टर से माफ़ी मांगने को कह रहे थे जिसके लिए वो तैयार नहीं थे। दुसरे दिन हमने क्लास बंद कर दिया तथा डॉक्टरों ने हॉस्पिटल बंद करवा दिया। पूरे आन्दोलन के दौरान मरीजों को छोड़कर हमने किसी को भी सिंह द्वार से किसी को भी नही आने दिया। पूरे आन्दोलन में जब दोपहर बाद जब कुछ लोग राजनीति करने लगे तो मैं और निशांत कमल भैया को कह वापस लौट गए तथा अपने दोस्तों से भी सावधान रहने को कहा । पर आन्दोलन को शाम के करीब सफलता मिल गयी तथा प्रोक्टर ने लिखित माफ़ी माँग ली। आन्दोलन तो समाप्त हो गया पर इसने मुझे बहुत सी बातें सिखाई। दुसरे दिन जब निशांत ने कहा कि चारु कह रहा था कि तुम लोग तो बक्चोदी कर रहे थे, मुझे तो मेरे फूफा जी ने छुड़ाया तो हमे एक अजीब ही अहसास हुआ जो कि आप खुद समझ सकते हैं। इस घटना ने मुझे गाँधी जी की आन्दोलन पद्धति समझा दी। मैं हमेशा सोचा करता था कि एक अहिंसक आन्दोलन से किसी को कैसे झुकाया जा सकता है मैं उन्हें हमेशा बेवकूफ समझता था, पर इस घटना ने मुझे उनके पद्धति की ताकत समझा दी। साथ ही साथ मुझे व्यवहारिक जीवन की बहुत सी कटु बातें भी सिखाई। मुझे वो सारी बातें भी आपके साथ शेयर करनी चाहिऐ पर कुछ मजबूरियों के कारण ऐसा नहीं कर सकता हूँ। पर इसने मुझे जीवन का दर्शन सिखाने में बहुत मदद की।

आपके सुझाव मुझे अगर कुछ और बता पाए तो उनका स्वागत है।

-दर्शन

Tuesday, October 30, 2007

ek aawaj

एक आवाज
बेबसी और लाचारी की ,
सुनाई पड़ती है
कभी चौक -चौराहों पर
या कभी आते जाते ।
एक आवाज
सुनाई पड़ती है
कभी घर में
कभी दफ्तर में।
दर्द व जख्म लिए
एक आवाज
सुनाई पड़ती है
कभी दिन में
कभी रात में।
सबने सुनी
एक आवाज
दर्द व बेबसी की
पर आब भी आती है
एक आवाज
बेबसी और लाचारी की ।

-दर्शन
बनारस