जीवन पथ है अद्वितीय ,मत लीक पकड़ कर चला करो।
कुछ खोज राह नई अपनी , खुद दीपक बनकर जला करो।
जीवन तर्को का जाल नहीं,अथवा भेड़ों की चाल नहीं।
मृदुमिटटी के हैं बने हुए ,मधुघट फुटा ही करते हैं।
लघु जीवन लेकर आये हैं,प्याले टूटा ही करते हैं।
फिर भी मदिरालय के अंदर ,मधु के घट हैं मधु प्याले हैं।
जो मादकता के मारे हैं ,वे मधु लूटा ही करते हैं।
वह कच्चा पीने वाला हैं ,जिसकी ममता घट प्यालों पर ।
जो सच्चे मधु से जला हुआ ,कब रोता हैं चिल्लाता हैं।
मदिरालय जाने को घर से चलता हैं पीने वाला ।
किस पथ से जाऊँ ,असमंजस में हैं वो भोला भाला ।
अलग अलग पथ बतलाते सब ,पर मैं ये बतलाता हूँ ।
राह पकड़ तू एक चला चल ,पा जाएगा मधुशाला। ।
--हरिवंश राय बच्चन
संपादन-शुभनीत
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