Saturday, June 13, 2015



Nano कहानी #1
तुलसी घाट की सीढ़ियों पर बैठकर हम कही-अनकही बतिया रहे थे । अचानक मैंने उससे कहा कि,
" मैं तो तुमसे शादी भी नहीं कर सकता क्योकि तुम कहती हो कि तुम अपनी जाति में ही शादी कर सकती हो।"
उसने भाव पूर्ण आँखों से मेरी ओर एकटक देखते हुए कहा कि,
"क्या तुम्हारी माँ इसके लिए मानेंगी ?"
दोनों के पास सिर्फ प्रश्न थे ।
(NOTE : Nano कहानी : कभी-कभी कुछ ही पंक्तियाँ सम्यक और सम्पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए काफी होती है । Nano कहानियाँ यही चंद पंक्तियाँ हैं जो 'कुछ अनकही' कहना चाहती हैं ।ये Nano कहानियाँ मेरी भी हैं और आपकी भी । इस श्रृंखला की पहली Nano कहानी आपके सामने प्रस्तुत है । सुझावों का हार्दिक स्वागत है ।)
वैधानिक घोषणा : इन 'Nano कहानियों के सभी पात्र, स्थान एवं घटनाएँ काल्पनिक हैं । इनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं है । यदि ऐसा होता है तो इसे मात्र एक संयोग माना जायेगा ।:p
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