मोहल्ला पर गुअती घटना कि एक तस्वीर पोस्ट की गई थी.इसे लेकर गरमा-गरम बहस शुरू हो गई.कुछ महिलाए और पत्रकार मानते है की इसे हटा लेना चाहिऐ,क्योकि इससे समाज में बह्शीपन बढेगा। जबकि कुछ लोग कह रहे है की इससे ज्यादा सामग्री बह्शीपन को बढ़ाने के लिए अन्यत्र उपलब्ध है,चित्र सिर्फ घटना की भयंकरता को दर्शा रहा है.इसी में एक टिपण्णी स्वप्नदर्शी जी कि है की इस तस्वीर को पत्रकारों ने बहुत ही निकट से खीचा है ,क्या उन्हें इसे मसाला खबर बनने के पहले उस घटना का विरोध नही करना चाहिऐ था ? इसने एक ने बहस को जन्म दिया है .मुझे भी लगता है कि ,इस पर हमे गंभीरता से विचार करना चाहिऐ.पत्रकारों को भी इस पर सोचना चाहिऐ और सोचना ही नही एक बहस के बाद फैसला लेना चाहिऐ ,आख़िर बुधिजिवियो में वे खुद को अगली कतार में रखते हैं।
Thursday, November 29, 2007
Tuesday, November 27, 2007
हिन्दी ब्लोग्स में और क्या क्या करें हम
हिन्दी ब्लोग्स के शुरुवात के बाद से इधर कुछ समय से ब्लोगों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है । परन्तु हममे से अधिकांश अपनी उर्जा वामपंथी-दक्षिणपंथी बहस और चर्चाओं में ही लगा रहें है । कुछ लोग साहित्यिक रचनाएँ भी कर रहें हैं पर ये बहुत कम है। इंग्लिश और अन्य भाषाओं में बहुत सारी रचनाओ का सारांश या अनुवाद या रचना ही आपको ब्लोग्स पर मिल जायेगी। हिन्दी में अभी ये प्रवृति नहीं के बराबर है। आलोचना का भी या कहें समालोचना का भी आभाव है ।
हिन्दी ब्लोग्स का एक और उपयोग हम आंखो देखी घटनाओ और वास्तविक स्थिति को भी लोगो तक पहुचाने के लिए कर सकते है।
और भी बहुत सारे उपयोग आपकी नजर में भी होंगे ,उनपर भी ध्यान दे तो हिन्दी ब्लोग में और समृधि आएगी। .............................................
................................................संख्या बढ़ने के साथ-साथ रचनाओ में विविधता और गुणवत्ता भी आनी चाहिए।
हिन्दी ब्लोग्स का एक और उपयोग हम आंखो देखी घटनाओ और वास्तविक स्थिति को भी लोगो तक पहुचाने के लिए कर सकते है।
और भी बहुत सारे उपयोग आपकी नजर में भी होंगे ,उनपर भी ध्यान दे तो हिन्दी ब्लोग में और समृधि आएगी। .............................................
................................................संख्या बढ़ने के साथ-साथ रचनाओ में विविधता और गुणवत्ता भी आनी चाहिए।
Monday, November 19, 2007
वामपंथ का चेहरा
नंदीग्राम की स्थिति क्या दर्शाती है वामपंथ का कुत्सित चेहरा या और कुछ! जिसने वामपंथी बुधिजिवियो को भी हिलाकर रख दिया.हिन्दी के बहुत से ब्लोगों पर लिखा जा रहा है पक्ष मे विपक्ष में.मोहल्ला पर विवेक जी के लेख ने एक भूचाल सा ला दिया है,विरोध का एक सिलसिला ही सुरु हो गया है.पर सही बात यह है कि,
वामपंथ तो नही मर सकता पर वामपंथ के नम पर राजनीती करने वालो की आत्मा जरूर मर गई है.देश के साथ धोखा तो ये पहले भी कर चुके हैं अब जनता के साथ भी कर रहे है.
सही कहा है मुक्तिबोध ने,
फटी जेब में मार्क्सवाद का सिक्का,
जैसे मुसलमानो के लिए मक्का .
वामपंथ तो नही मर सकता पर वामपंथ के नम पर राजनीती करने वालो की आत्मा जरूर मर गई है.देश के साथ धोखा तो ये पहले भी कर चुके हैं अब जनता के साथ भी कर रहे है.
सही कहा है मुक्तिबोध ने,
फटी जेब में मार्क्सवाद का सिक्का,
जैसे मुसलमानो के लिए मक्का .
Sunday, November 4, 2007
मानव
भारत कि अमीरी का फायदा जनता को कैसे मिले
शेयर बाज़ार कि उछाल का फायदा सिर्फ मुकेश अम्बानी जैसे लोगो के लिए ही है ,भारत ऐसा देश है जहाँ २८करोर् से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं। आज सरकार सारी सेवाओं का निजीकरण कर रही है पर उन लोगो के बारे में कोई नही सोच रहा है जिनके लिए अभी भी प्रशासनिक मशीनरी ही जीवन रेखा है । मैं निजीकरण या वैश्वीकरण का विरोधी नही हूँ ,आज के युग में यह जरुरत बन गयी है तथा यह भारत के हित में भी है। परन्तु इसके साथ वंचितों के लिए भी प्रयास होने चाहिए। उन्हें भी वैश्वीकरण का लाभ मिलना चाहिऐ। मैं नहीं सोचता कि मेरी इस बात से कोई असहमत होगा, क्योंकि उनका भी देश और उसके संसाधनों पर हक है।
अपने विचार जरूर प्रेषित करें।
-दर्शन
अपने विचार जरूर प्रेषित करें।
-दर्शन
Friday, November 2, 2007
भजपा की परमाणु डील पर नीति
चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" href="http://www.chitthajagat.in/?claim=trjz3b4h7h9o">चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" alt="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" src="http://www.chitthajagat.in/images/claim.gif" border=0>
जो भाजपा अपने शासन मी अमेरिका से दोस्ती कि पींगे बढ़ा रहा था ,वही आज छुद्र राजनीतिक स्वार्थों के कारण आज बेसिर पैर का विरोध कर रही है। वैसे डेविड मल्फोर्ड के समझाने का कुछ असर हुआ है, सबसे बेहतर बात होगी कि भाजपा और कांग्रेस अपने राजनीति से ऊपर उठ कर डील को लागु करवाए तथा देश और वामपंथियों को दिखाए कि देश कि विदेश नीति पर दोनो पार्टिया समन सोच और समझ रखती है । अगर यह समझौता नही होता है तो उर्जा कि जो कमी होगी वह तो ज्यादा नही है पर भारत कि विश्व स्तर पर ऐसे देश की छवि बनेगी जो समझौतों का पालन नही करता है.साथ ही साथ वह परमाणु समुदाय में अछूत बना रहेगा। इसलिए आज हमारे हित में है कि मिले हुए मौक़े का लाभ उठाए तथा प्रगति का एक कदम बढाये ।
आपने विचार जरूर प्रेषित करें।
-दर्शन
जो भाजपा अपने शासन मी अमेरिका से दोस्ती कि पींगे बढ़ा रहा था ,वही आज छुद्र राजनीतिक स्वार्थों के कारण आज बेसिर पैर का विरोध कर रही है। वैसे डेविड मल्फोर्ड के समझाने का कुछ असर हुआ है, सबसे बेहतर बात होगी कि भाजपा और कांग्रेस अपने राजनीति से ऊपर उठ कर डील को लागु करवाए तथा देश और वामपंथियों को दिखाए कि देश कि विदेश नीति पर दोनो पार्टिया समन सोच और समझ रखती है । अगर यह समझौता नही होता है तो उर्जा कि जो कमी होगी वह तो ज्यादा नही है पर भारत कि विश्व स्तर पर ऐसे देश की छवि बनेगी जो समझौतों का पालन नही करता है.साथ ही साथ वह परमाणु समुदाय में अछूत बना रहेगा। इसलिए आज हमारे हित में है कि मिले हुए मौक़े का लाभ उठाए तथा प्रगति का एक कदम बढाये ।
आपने विचार जरूर प्रेषित करें।
-दर्शन
Thursday, November 1, 2007
सुबह ए बनारस
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